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रैवन की लोक कथाएँ - 1

सुषमा गुप्ता

प्रकाशक : इन्द्रा पब्लिशिंग हाउस प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :114
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9481
आईएसबीएन :9789384535391

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

लोक कथाएँ किसी भी समाज की संस्कृति का एक अटूट हिस्सा होती हैं। ये संसार को उस समाज के वारे में बताती हैं जिसने इन्हें रचा होता है। आज से वहुत साल पहले, करीब 100 साल पहले, ये केवल मुँहज़बानी ही कही जाती थीं और कह-सुन कर ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचती थीं, इसलिये किसी भी लोक-कथा का मूल रूप क्या रहा होगा यह कहना मुश्किल है।

इस पुस्तक के माध्यम से हम ऐसी ही कुछ विदेशी लोक कथाएँ जो अंग्रेज़ी व अन्य भाषाएँ बोलने वाले देशों में जन्मी हैं अपने हिन्दी भाषा बोलने वाले समाज तक पहुँचाने की कोशिश कर रहे है। इनमें से बहुत सारी तोक-कथाएँ हमने अंग्रेज़ी की किताबों से, विश्वविद्यालयों में दी गईं थीसेज़ से, यश-पत्रिकाओं से ली हैं जबकि कुछ लोगों से सुनकर लिखी हैं। अभी तक ऐसी 1000 से अधिक लोक-कथाएँ हिन्दी में लिखी जा चुकी हैं।

इस बात का खास ध्यान रखा गया है कि ये सब लोक-कथाएँ हर वह आदमी पढ़ सके जो बीती सी भी हिन्दी पढ़ना जानता हो और उसे समझता हो। ये कथाएँ यहाँ तो सरल भाषा में प्रस्तुत की गयीं हैं पर इनको हिन्दी में लिखने में एक बहुत बड़ी समस्या आयी है। वह समस्या यह है कि करीब-करीब 95 प्रतिशत विदेशी नामों को हिन्दी में लिखना बहुत मुश्किल है, चाहे वे आदमियों के हों या फिर जगहों के। दूसरे उनका उच्चारण भी बहुत ही अलग तरीके का होता है। कोई कुछ बोलता है तो कोई कुछ। इसको साफ करने के लिये इस सीरीज़ की सब किताबों में फुटनोट्स में उनको अंग्रेज़ी में लिख दिया गया है ताकि कोई भी पढ़ने वाला उनको अंग्रेज़ी के शब्दों की सहायता से कहीं भी खोज सके। इसके अलावा और भी बहुत सारे शब्द जो हम भारतीयों के लिये नये हैं, उनकी भी फुटनोट्स में और चित्रों की सहायता से समझाया गया है।

ये सब कथाएँ ‘‘देश-विदेश की लोक कथाएँ’’ नाम की सीरीज़ में छापी जा रहीं हैं। ये लोक-कथाएँ आपका मनोरंजन तो करेंगी ही, साथ में दूसरे देशों की प्रवृति के बारे में जानकारी भी देंगी।

हिन्दी साहित्य-जगत में इनके भव्य स्वागत की आशा के साथ...

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